आवारा प्रजातंत्र

हमारा देश एक महान दौर से गुज़र रहा है। जहां नेताओं को स्मारकों की तरह पूजा जाता है और स्मारकों पर थूका जाता है। यही है डेमोक्रेसी, जनतन्त्र, जम्हूरियत, जनता का, जनता के लिए, जनता के द्वारा - और कुत्ते - आवारा कुत्ते - वो जो दिख जाते हैं सड़कों के किनारे टूटे कान, कटी दुम, झड़े बाल, कभी एक दूसरे से झगड़ते हुए, अक्सर एक दूसरे के ऊपर चढ़े हुए। तभी तो यहां एक दो या दस नहीं, सौ करोड़ कुत्ते पनपे हैं।

जनवरी की उस कड़कड़ाती सुबह शहर की सबसे व्यस्त सड़क के किनारे मैं रामभरोसे के खोमचे पर चाय पीने जैसे-तैसे पहुंचा। शरीर की सारी हड्डियाँ किसी कम्पाउंड पण्डुलुम की तरह औसिलेट कर रहीं थी। खोमचे के सामने पतली चीथडनुमा बनियान पहने, हमारी अनौपचारिक अर्थव्यवस्था के प्रतीक, एक बुज़ुर्ग मज़दूर, जिन्हे वहां के बाकी बेघर छोटे महाराज के नाम से बुलाते थे, नाक के बाल तोड़ते हुए किसी को हड़का रहे थे - "एएए! कुत्ते को क्यूँ छेड़ता है। कुत्ता भी वापस छेड़ देगा तो भरी जवानी में रोता रोता अस्पताल जाएगा। ये तेरे घर का पालतू टॉमी नहीं, सड़क का आवारा टॉमी है।"

भारतवर्ष में टॉमी शब्द के माने बाकी दुनिया से अलग हैं। इसका अर्थ जब टॉमी हिलफिगर को पता चला तो एकदम आग बबूला होकर बोले - "यदि मुझे पता होता कि मेरे बनाए कपड़े हिन्दुस्तानी पहनेंगे तो मैं कभी कपड़े बनाता ही नहीं "
अब उन्हें ये कौन समझाए कि हिन्दुस्तान में उनके बनाए कपड़े पहनने की हैसियत कोई हिन्दुस्तानी नहीं रखता।


खैर मैंने उन फटी बनियान वाले आदरणीय से पूछा -
"महाराज! आप रात भर सड़क पर नंगे बदन सोते हैं आपको अग्नि देव से कोई वरदान प्राप्त है क्या?"

"तुम भी सड़क पर सोया करो ठंड कम लगेगी।"
गुरबत से बड़ा कोई व्यंगकार नहीं है इसीलिए गरीब की हर बात में व्यंग होता है।
"और सड़क पर सोने में कोई मनाई है क्या? अपना देश है। अपना राज है। जहां मन चाहे सो जाओ।"

प्रजातंत्र का महत्व वही समझ सकता है जो असल में आवारा हो। घरों और कोठियों में प्रजातंत्र नहीं चलता। घर परिवारों में एक मुखिया निर्धारित होता है। सड़कों पर सभी राजा हैं। कुत्ते भी और इंसान भी। आवारा कुत्ते और बेघर इंसान में कुछ ज़्यादा फ़र्क़ नहीं है। बस इतना की यदि आप कुत्ते को रोटी खिला दें तो वो कभी आपको काटेगा नहीं, इंसानों से इस व्यवहार चेष्ठा नहीं की जा सकती। अपने तमाम मतभेदों के बावजूद सड़कों के बाशिंदे आपस में एक अद्भुत सामंजस्य, एक अनोखा तालमेल बना लेते हैं।

रामभरोसे ने मुझे चाय की प्याली थमाई और इस से पहले की में गरमागरम चाय की चुस्की से अपनी बर्फ हो चुकी बुद्धि को जगाता, एक कर्णभेदी चीख ने मेरी हड्डियों के विब्रशन को 440 वोल्ट का ज़ोरदार झटका दे डाला। चाय तो गई गई साली इतनी ठंड में हाथ भी जला गई।

"ये लो बेटा! देखो साला आंख का अंधा संजय गांधी की औलाद।" रामभरोसे ने गल्ले के पीछे से चुटकी ली। "लीजिए भैय्या आप ये दूसरी प्याली ले लीजिए। पैसे की कोई फिक्र नहीं है।"

मैंने पलट के सड़क की जानिब देखा तो छोटे महाराज सड़क की मध्य रेखा की ओर दौड़ लगा रहे थे। टॉमी बेचारा, कचरे के डब्बों का बादशाह, अपनी रियासत का मुआयना करते करते, एक सरकारी बस की चपेट में आकर शहीद हो चला था। बहरहाल, तीन सेकंड के लिए लोगों ने देखा, कुछ ने पांच सेकंड के लिए। फिर  बस अपने टाइम टेबल में बिना कुछ फेरबदल किए आगे बढ़ गई और सब कुछ जनवरी की किसी साधारण सुबह की तरह वापस सामान्य हो गया। मैंने भी दो चार अभद्र शब्द अपने मन में बस वाले को बोले और जले हुए हाथ से चाय की दूसरी प्याली उठाई। कुत्ते की मौत पर लोगों को दुख नहीं हुआ ऐसा नहीं था, पर कुत्ता था तो कुत्ते जैसी ही प्रतिक्रिया मिलेगी। टॉमी कोई मेरा पालतू तो था नहीं कि उसकी लाश की भी ज़िम्मेदारी में उठाऊं। उसके लिए कब्र खोदूं, नमक की बोरियां भरूं, आंसू बहाऊँ और ऊपर से मिट्टी डाल कर ईश्वर से कामना करूं की है प्रभु मेरे प्रिय टॉमी की आत्मा को शांति दे। ये सब चोंचले आवारा कुत्तों पर लागू नहीं होते। पालतू कुत्ते वो समझदारी, वो मुस्तैदी खो देते हैं। आवारा कुत्ते बिना किसी हो हल्ले के दुनिया से रुखसत लेते हैं। उनकी लाशें बिना किसी को परेशान किए कारों के नीचे कुचलती हुई सपाट होती रहती हैं। मौत के पश्चात भी वो कौव्वों चीलों चूहों का पेट भरता है।

आपने कभी किसी सड़क पर मरे हुए कुत्ते की आंखों में झांका है? खुद की तक़दीर नज़र आती है उनमें।

अचानक खोमचे पर गर्मागर्मी होने लगी की आखिर गलती है किसकी। कुछ ने बस ड्राइवर को शराबी बताया, कुछ ने कहा की कुत्ता पागल था, कुछ ने कहा ये साली सारी व्यवस्था ही भ्रष्ट है तो कुछ ने देशविरोधी माओवादी, चीनी, पाकिस्तानियों का नाम लिया। अब  डेमोक्रेसी है। सबको अपना अपना मत रखने का हक़ है। इस मुख्यधारा में शामिल होने के लिए जैसे ही मैंने अपना फिकरा छोड़ने के लिए मुंह खोला, एक और गगनभेदी चीत्कार ने दूसरी चाय की प्याली भी मेरे हाथ से गिरा दी।

पलट के देखा तो इस बार एक बड़ी संख्या में लोग सड़क की मध्यरेखा की ओर रफ़्तार से बढ़ते दिखे। निरंतर चलते ट्रैफिक ने भी एक छोटा सा अल्पविराम लिया। इस बार कोई टॉमी नहीं हमारे छोटे महाराज अपनी नाक के बाल तोड़ते तोड़ते एक ट्रक के नीचे आकर वीरगति को प्राप्त हो गए। लोगों ने महाराज की लाश उठाकर सड़क के किनारे रख दी। बेघर इंसान और आवारा कुत्ते में बस यही धागे बराबर का फ़र्क़ है। इंसान की लाश उठाकर लोग सड़क के किनारे रख देते हैं।

मैं कोई खादी कुर्ता, गंदा झोला पहन के पिछड़ों का झंडा उठाए घूमने वाला भावुक आंदोलनकारी नहीं हूं, पर जनवरी की उसी कड़कड़ाती शाम को मैंने रामभरोसे के खोमचे के किनारे दो मोमबत्तियां सड़क की इस रियासत के उन दो गुमनाम आकाओं के नाम जलाई, जिनकी कोई भी कहानी किसी इतिहास के किसी पन्ने में दर्ज नहीं होगी।

Inspiration - http://www.thehindu.com/opinion/op-ed/straydom-ode-to-a-nameless-friend/article8663470.ece

खामखा


मेरा किस्सा बेज़ार तो बस खामखा है
बज़्म का हंगाम तो बस खामखा है
 
इस शब् के लाख चेहरे जवाँ हैं, 
सहर की आरज़ू तो बस खामखा है

तेरे फ़िराक के दर्द कुछ हसीं हैं, 
वस्ल की चाहत तो बस खामखा है

मौत का तस्सव्वुर खूबसूरत है, 
जीने की तमन्ना तो बस खामखा है

कासिद तेरे पैगाम में लफ्ज़ बेशुमार हैं 
जज़्बात की ख्वाहिश तो बस खामखा है 

Red Letter

I am Morpheus - I am the vicious king, I am the young prince, I am the brave soldier, I am the hungry wretch, I am the greedy Jew, I am the dark hue, I am yesterday, I am today, I am tomorrow, I am Morpheus, You are Me, I am You


I am Meebo - I am the grey church, I am the red mosque, I am the blue rennaisance, I am the black dream, I am the great revolution, I am the oppressed farmer, I am the dirty gunman, I am the Mafia, I am the gestapo, I am the ally, I am the axis, I am Meebo, You are Me, I am you


I am Norman - I am the royal decree, I am the holy grail, I am the bhagwat geeta, I am the Civil Right, I am the 302, I am the blind woman, I am the 377, I am the Dingy Pub, I am the Delhi Gate, I am Norman, You are Me, I am you.

ये शाम कुछ अजीब है


आज लगता है ज़िन्दगी किसी और शहर में है
आज लगता है मैकशी किसी और शहर में है

कल उमंगें भी थी इन बेज़ार सी गलियों में 
आज लगता है बंदगी किसी और शहर में है

कल शादाब सी थी शब सहर से मिलने में
आज लगता है चांदनी किसी और शहर में है

सन्नाटों से मुखातिब है ज़िन्दगी मैखानों में
आज लगता है दोस्ती किसी और शहर में है

Nostalgia

Dew drops on the window pane
Mist in the eye
Bedsheets of grasses green
Sweet breaths of sky
Sleepy breezes
Rainfalls and Sunshines

Children in school uniforms
People lost and fresh
Streets full of pretty girls
and those meaningless
Six degrees and few

Tea cups on hilly roads
Old seats and new
Mango leaves and tree trunks
and the ones below the view

Coffee shops and bike rides
Slipped and never found
Friends and family

Memories of another life
Tenderfoot and raw

Home Sweet Home

- To all the good people from Dehradun

A Thousand Desires

A thousand desires such as these
Each desire worth a life time

A thousand desires unbound
of those lost n never found

A thousand desires untaught
in bloody battles never fought

A thousand desires understood
making willow of every wood

A thousand desires unfed
feeding hopes to the dead

A thousand desires untold
by raw hearts and minds old

A thousand desires unbred
across long miles still untread

A thousand desires uncared
to broken arrows not vaned

A thosand desires undesired
A thousand hearts unwired

A thousand desires indeed
those necessecities with no need

A thousand desires such as these
Each desire worth a thousand lives

वो गुज़रे ज़माने, वो फिर याद आये



वो सूरज कि पहली किरण का चमकना
हरी घास पे ओस का जगमगाना
वो चिड़िया के बच्चे का डाली पे गाना
वो तितली का फूलों को छूकर के जाना
वो मंज़र, वो सूरज, वो पल याद आये
वो गुज़रे ज़माने, वो फिर याद आये

वो गरमी में माथे से टपका पसीना
ठिठुरती हुई सर्दियों का महीना
वो बारिश के पानी का सडकों पे थमना
वो पतझड़ में पत्तों का शाखों से झड़ना
वो मौसम, वो पत्ते, वो दिन याद आये
वो गुज़रे ज़माने, वो फिर याद आये

वो यारों का मिलके ठहाके लगाना
मोहब्बत भरी दास्तानें सुनाना
वो लड़ना झगड़ना वो गाना बजाना
वो हँसते हुए सारे गम भूल जाना
वो साथी, वो नग़मे, वो सब याद आये
वो गुज़रे ज़माने, वो फिर याद आये
हरी घास पे ओस का जगमगाना

उन सब की याद में

कुछ लोग थे, मेरे ही जैसे
लंबा सफर तय कर थे आए
साथ में लाए थे कुछ गोला बारूद
कुछ गोलियाँ चलायीं, कुछ श्मशान जलाए
और मुझ जैसे ही कुछ लोग गिराए

कुछ ने गुस्सा किया
कुछ ने आँसू बहाए
और कुछों ने दिल में
पक्के कुछ इरादे बनाए
एक ने उँगली उठायी
दूसरे ने गर्दन हिलाई
और तीसरे ने
कभी उँगली उठायी, कभी गर्दन हिलाई



अब गुस्सा थम गया है
आँसू सब बह गए हैं
और इरादे जो पक्के थे
सारे अब डह गए हैं

कल शाम कब्रस्तान के दरवाज़े फिर से खोल दिए
और कुछ लोगों ने जाकर जश्न भी मनाया वहाँ पर

(उनकी याद में जो नहीं रहे.....
...और उनकी याद में जो बाक़ी हैं)


Image Courtesy - Indian Express

A lot like love

cherubic voices
sugary lines
airy laughter
lovely smiles
soothing rains
tickling skies
shining eyes
sublime songs
feathery touch
radiant lips
silky heartbeats.....
Your angelic name....
.....A lot like love....

I'm fine

cryptic voices
confined lines
sombre laughter
serene smiles
mystic rains
morbid skies
grim reapers
grotesque tine
dry eyes
wet songs
ominous heartbeats.....
.....everybody says "I'm fine".....

A lot like love

The lone light every morning

Face in the dark, moonlight

A hundred twinkiling stars in the sky

Each twinkling sight twinkles

Dimples on a young face

A jasmine mystique of the spring days

Laughter mirth joy excitement

The beseech of the horizon

Shining eyes

Soulful smile

Cherubic breeze

A lot like love.....

सोने का लिफाफा

एक लिफाफा कागज़ का था

राह में बेसुध भटक रहा था

फिजा सुनहरी साथ थी उसके

उसके अन्दर चाँद छिपा था

हल्की नीली शक्ल पे उसकी

काला स्याह एक हरफ चढा था

ख़त के ऊपर नाम था मेरा

पता भी मेरे आँगन का था

चाँद की आँखें सुर्ख लाल थी

लबों से तारे बिखर रहे थे

ग्यारह तारे आसमान में

एक मेरी मुट्ठी में कैद था

हथेलियों पर ख़ाक जमी थी

तारा मेरे नाम का ना था

बारह तारे आसमान में

एक लिफाफा फटा हुआ था

एक लिफाफा कागज़ का था

जिसके अन्दर चाँद छुपा था

फिजा सुनहरी साथ में लेकर

उसका चेहरा ज़र्द पड़ा था

Lice Heads

I knew you then
and we were both happy together
till the time we parted
to meet rarely
I am sorry I had cut the rope
but then you couldn't play football
And I had even made a new one
which I would give you in the morning
But I could not get up in time
and you left early
My heart was shattered
and the reason was you
One day I met you
with another friend by your side
I broke again
and smiled weakly at your friend
I knew we could never be happy together now
I knew we could never be together now
I knew I can never be happy now
Dear Nai Nhoi,
wish you a happy married life
-
love
Jeab

फरहात

चाँद का आलम बुझा बुझा था, रोशन था मैं तेरी याद में...
नींद की झूठी चादर ओढे, जाग रहा था तेरी याद में

सर्द हवा के हर झोंके में, तेरी साँसे गर्म बसी थीं...
रजनीगंधा डाल थी सूनी, महक रहा था तेरी याद में

रात की सारी वुसअतें भी, तेरे नाज़ में झुकी हुई थीं...
मैखानों में जाम थे खाली, मदहोशी थी तेरी याद में

सहर की पहली शुआ में बेशक, नूर तेरी दो आंखों का था...
जिन्दां में मक्तूल था आजिज़, आजादी थी तेरी याद में

तेरी याद में जीना मरना, तेरी याद में खो जाना...
ज़ाहिद सारे ज़ार ज़ार हैं, राह-ए-दहर है तेरी याद में....

खता

एक खामोशी है हर ओर बियाबान में

कभी कहकहों के फुव्वारे हुआ करते थे यहाँ

कुछ आवाजें बोलती थी इन हवाओं में

कुछ लफ्ज़ शोर मचाते थे कभी



हर झोंके में कुछ कांपते साज़ दफ़न हैं

कुछ बातें बाकी हैं ज़र्रों में अब भी



एक बेवा की टूटी चूड़ी की खनक सुनाई देती है

बुझी पलक से गिरे अश्क की चीख सुनाई देती है

रगों से निकले लाल खून की आह सुनाई देती है

मुर्दा दिल और धडकनों की फफक सुनाई देती है



सालों पहले, इसी ज़मीं पर, कुछ बरगद के पेड़ खड़े थे

सालों पहले, इसी ज़मीं ने, कुछ बेगैरत लोग जने थे



दूर कहीं, किसी कोने में, कुछ बेगैरत लोग खड़े हैं

दूर कहीं, किसी कोने में, कुछ बरगद के पेड़ गिरे हैं


We The People

The sun was tired and the sky was grey

Hot winds had blown throughout the day


They all had faces but there was no cry

The air was humid but the eyes were dry


"The old man with the torch

is lying dead on the porch"

said the boy from the slime

"n it is the fourteenth time"


They came down and there they stood

all heads covered in one white hood


And threw the body into the cold water

and brought the cows for the slaughter


They went back home with the setting sun

and started preparing for next day's fun


No one cared, forgot what they had seen

"We'll think about it when it is fifteen"

02.14.08

Let the love fill the air today.....Later wind will blow
Let the whispers steal the noise today.....Later they will scream
Let the shadows lite the candles today.....Later they will burn
Let my heart see you smile today.....Later it will fail
Let your arms rest my head today.....Later you will go
Let my love kiss your soul today.....Later I will die
'cause it's the day of love today.....Later it'll be another day

Without You


You weren't there that day
I was sitting on the shore
staring at your name on the sand
when the waves washed everything away
And on the sand dune once
when the storm started from nowhere
and i was buried alive
It was there on the white snow
whiter than the snow
pure as the rain
The sun came out and you melted
and I burned


No matter how much i ran towards you


you drifted away

And then, the day i was coming back
i saw my dreams in pink, orange and blue
when on the white sea of clouds below
I saw your face etched upon
And the times actually stopped
froze

giving their warmth to me
And i gained a few heartbeats
heartbeats enough for another life
A life in another world
where there is white, blue, pink and orange.....

Please Dont Pluck That Flower

The seed was sown sometime in autumn। The sun was shining brightly then, as if telling him that it wont be able to render services when the cold north winds subdue it। He knew it too, but it had to be done some time. He had tried it last spring. Spring he thought was the ideal time. But the darn sun wasn't as collusive then, and it was helpless too. Soon it would be winter and the snow would set in. He was prepared for the worst, but the seed wasn't. It was a great hazard. Life is a hazard he argued. He watered the area for thirty eight days, added manure to the soil, begged the sun to show mercy and hoped. Hope. Hope was the last thing he had. He never believed in God. May be it was rational, may be it was just his rebellious complexion. Whatever it was his labour brought fruit. The first signs of life appeared on the torrid earth. The green bud sprouted out of the ground in glee. Happiness. It was November now. Time flies, yes it does and soon it would fly to the frosty winter. First green leaf matured with blood gushing into the veins. The sun was shining still. The temperatures were going down by the day. He apprehended the winter but hoped for a miracle. Hope. Yeah, he still had it. And one day a blue flower bloomed. He was astonished. The winter had passed. Rather it hadn't come. He was happy. Delighted. Ecstatic. It was a miracle. Winter didn't come, the sun was shining mirthfully. And the sun kept on shining till one day the flower dried and the plant died and then it rained!!!

And I Confess

Sometimes I love them for their goods
Sometimes I hate them for their evils
Sometimes I bear with their nonsense
Sometimes I trust their advice
Sometimes I cry when they cry
Sometimes I cry when they laugh
Sometimes I laugh when they cry
Sometimes I laugh when they laugh
Sometimes I miss them when thier gone
Sometimes I wish them away
Sometimes I thank them
Sometimes I fight them
Sometimes I applaude them
Sometimes I ignore them
Sometimes I believe them
Sometimes I doubt them
Sometimes I help them
Sometimes I fail them
Sometimes I conspire with them
Sometimes I plot against them
Sometimes I praise them
Sometimes I curse them
Sometimes I just can't live with them
All the times I can't exist without them!!

Retreat

It was Blood that reddened the evening sky
When flashes from the Past passed me by,
And I fought on till the Final breath
Last summer at dusk I was laid to Death,

Six long months, dead I have been
No pain No passion No mirth have I seen,
Void spaces, No lights around
Yet, No chains, No shackles to hold me Bound.

How will I take it now, this Dazzling bright
I have been used to the Deep Dark night,
Far far West rises the Sun
Stripping the Moon off it's subtle fun,
And I hope I won't perish in Vain
Bless me, I am being born Again.

A Thousand Desires



A thousand desires such as these
Each desire worth a life time

A thousand desires unbound
of those lost n never found

A thousand desires untaught
in bloody battles never fought

A thousand desires understood
making willow of every wood

A thousand desires unfed
feeding hopes to the dead

A thousand desires untold
by raw hearts and minds old

A thousand desires unbred
across long miles still untread

A thousand desires uncared
to broken arrows not vaned

A thosand desires undesired
A thousand hearts unwired

A thousand desires indeed
those necessecities with no need

A thousand desires such as these
Each desire worth a thousand lives

Those Six Hours

I wake up every morning at 7:30. Go to the bathroom, shit, brush, shave and get ready for the office. Halfway through to the office my friend drops me and then i hire an auto. Reach the office at around 10 o' clock, sign into the attendance register. Switch on my workstation and work. Of course there are quite a few cigarette breaks! Lunch at 2, get back to office and leave at around 9. Hire an auto and get back home. Food will be ordered by the time i reach. Watch television, spend time on the internet.

Not bad eh?At the end of day I am in full control of my life.... or am I??

Let's rewind.

Every morning an alarm on my Nokia cellphone wakes me up at 7:30. I brush with my Oral-B toothbrush and Colgate toothpaste, shave with Gilette razor. Shower-Dettol soap and Clinic shampoo. Halfway through to the office my friend drops me on his Bajaj and then i hire a Bajaj auto.Reach the office at around 10 o' clock, sign into the attendance register with a Reynolds pen. Switch on my workstation with HP computer and Intel processor and work. Of course there are quite a few cigarette breaks - Wills only! Lunch at 2 at Juice Junction, get back to office and leave at around 9. Hire a Bajaj auto and get back home. Food will be ordered by the time i reach- pitza from Pizza Hut. Watch Phillips television, spend time on the internet - Airtel broadband.

At the end of the day, where am I in my life?

Take these blues away and i would be walking nude on the streets. Infact I would be walking nude nowhere.

But at the end of the day you know when I am in full control of my life? When I am absolutely free. It's those six hours of my day when I am on my bed, asleep.

Broken Arrow

I am the usurper, I am the King,
of my kingdom where no birds sing

I am a poor man's cottage, a Prince's palace,
I destroy my peace and seek my solace

I am The Captain of my empty ship
I am the One at the far end of my whip


I ve been beaten, I ve been battered,
I am a glass which has been shattered

I am the dying dream of an unsung sorrow
I am the unheard words of a Broken Arrow

Twenty One Years

Walking through the woods, with his head held high. The night was cold, his dilapidated linnen shined brightly as he surveyed through the long stretch of marshes alongside the old broken road. The moon shined even more. The night was unusually bright he thought and as he looked up the star studded sky, the Libra was standing tall amongst the others. 'Ah!', smiled the Prince, ' Twenty one. So be it'.

Yes, twenty one it was. Twenty one years ago the King had come and taken his place in the palace. The King was loved by all then. New to the knigdom, he enjoyed the comforts, the love, the affection.

'He was just like me then', remembered the Prince. Twenty one years ago when the prince had resorted to these jungles, he knew time would fly away fast, but he never believed it.


The Prince was never hated during his times. And even now no one curses him. He never came close to breaking a heart. Not one bad deed to his name. And people say he was good.
For twenty one years the King has been involved in a number of felonies, conspiracies and conniviances. He has been hated for his wrongs, loved for his goods. Yes his good deeds also find a place in the book. And he passes muster, so the people say.
The Prince, well the Prince never did anything spectacular. No one remembers him. He didn't do a thing.


The Prince smiled again and continued his walk with the old torn shoe on his left foot. The diamond of the ring on his left hand was shining as brightly as the moon.

The Prince walks on with his head still high and the King suffers.

It was twenty one years ago when the King was brought to life and the Prince lay dead.
- 22nd June 2006

कौन है हिंदू, कौन मुसलमाँ


मेरे मुल्क की बदनसीबी में, कौन है हिंदू, कौन मुसलमाँ...
जात धर्म की राजनीति में, कौन है हिंदू, कौन मुसलमाँ...



बीती रात को चौराहे पर, एक अक्स की साँस रुकी थी
दर्पण के बिखरे टुकडों में, कौन है हिंदू, कौन मुसलमाँ...



नींद में शायद, चाँद रात में, एक रूह की काँप सुनी थी
सरगम के टूटे साजों में, कौन है हिंदू, कौन मुसलमाँ...



आज सुबह सहरी से पहेले, आसमान में घटा सुर्ख थी
कुचले फूलों के रंगों में, कौन है हिंदू , कौन मुसलमाँ...



आजादी की सालगिरह पर, एक ज़फर की मौत हुई थी
अमर शहीदों के बलिदानों में, कौन है हिंदू, कौन मुसलमाँ...



नदी किनारे, ज़र्द रेत पर, नंगी लाशें पड़ी हुई हैं
सौ करोड़ इन बेगुनाहों में, कौन है हिंदू, कौन मुसलमाँ...



मेरे वतन के परवाजों में, मार मज़हब की कब तक होगी
जन गन मन अधिनायक जय हे, कौन है हिंदू, कौन मुसलमाँ

धरती अब भी घूम रही है



शायद शाम ढल न पाती
सर्द हवाएं थम सी जाती

सूरज शायद बुझ न जाता
चाँद फलक में खो न पाता

नर्म घास पर लेटे लेटे
शायद उस दिन रो न पाता

दर्द नज़र से बयाँ न होता
ग़मों का बादल फूट न पाता

...अगर तुम मिलने आ जाती
... मगर तुम नहीं आई....
और सूरज डूब गया...
चाँद भी नहीं आया...
सर्द हवाएं तेज़ हो गयी...
शब तारीक खेज़ हो गयी...

वक्त न जाने कितना बीता
खुश्क ज़माना किज्ब में जीता

दुनिया बेशक थम सी गयी है
धरती अब भी घूम रही है...
धरती अब भी घूम रही है...

ज़ख्म



हर चौराहे मौत खड़ी
हर सू एक जंग छिड़ी...

हर हाथ में खंजर
हर सिम्ट एक खूनी मंज़र...

यह ज़ख्मी शहर है
ज़ख्मी शहर यह

ज़ख्मों का शहर है...

रहबर



पंद्रह चाँद एक शब के...

पाँच...चमकना भूल गए...
चार की शुआ बाक़ी ले गए...
तीन... खो गए आसमान में
दो बादल के पीछे हैं...


एक बचा रहबर मेरा...
वो भी कुछ नाराज़ सा है!!!

सिफर


सुबह से कोई सोग है दिल में
आँख का पानी सूख गया है
लफ्ज़ लबों पर दुआ बने हैं
खुदा न जाने रूठ गया है
लाखों चेहरे पास खडे हैं
नज़र का चश्मा टूट गया है
सिफर से चल के सिफर पे पहुँचे
सफर का मकसद भूल गया है

अगर तुम आ भी जाओ


कुछ ख्वाहिशें अभी अधूरी सी
कुछ सपने अभी हैं बाक़ी


एक चुटकी समंदर की रेत
कुछ बूँद सेहरा का पानी
मुरझाये हुए फूल की खुश्बू
एक छोटा सा टुकड़ा चाँद का


जनवरी की बर्फ का बादल
सोए हुए सूरज की धूप
पलंग की लकडी का जंगल
अरमानों के पिंजर का खून


कुछ ख्वाहिशें अभी जवाँ हुई हैं
कुछ सपने पूरे होंगे कभी.....

मृग तृष्णा

मैं सारी रात जागता हूँ सूरज की पहली किरण की रोशनी को अपनी मुट्ठी में क़ैद करने के निरर्थक प्रयास में अपने अस्तित्त्व को नष्ट करता जा रहा हूँ कभी आँख लग जाती है तो सपने देखता हूँ सपने टूटते हैं, कुछ याद नहीं रहता, बस एक एहसास बाक़ी रह जाता है जो हिम्मत देता है तब तक जगे रहने की जब तक नींद ना आये दुःख, दर्द, हंसी, ख़ुशी, प्रेम, द्वेष, क्रोध, ममता कुछ भी नहीं बचा सर्दियों की धूप की गरमाहट, बारिश की पहेली बूँद, फूलों की खुश्बू, बरगद के पेड़ की शीतल छाँव, ठण्डी हवा का झोंका - इन सब के मायने पिछली बरसात में धुलते चले गए कहीँ पढा था कि आनंद और शांती एक दूसरे के विपरीत होते हैं ना आनंद है ना शांती, बस एक इंतज़ार है जिसे बस महसूस किया जा सकता है छूने के लिए हाथ बढ़ाओ तो हाथ में बस ख़ाक आती है, देखने की कोशिश करो तो आंखें धूमिल हो जाती हैं मैं तुम्हे देखना चाहता हूँ, सुनना चाहता हूँ, तुमसे कुछ कहना चाहता हूँ, तुम्हे छूना चाहता हूँ, तुम्हारे साथ जीना चाहता हूँ.........पर ना जाने कब सेहर होगी.....कब सूरज निकलेगा......और कब मैं उस किरण को छू पाउँगा......


कश म कश




फैली हर सिम्ट जो यादें थी कहॉ खो गयी,
मेरे चेहरे में एक सूरत थी कहॉ खो गयी

पहले हर साज़ से आती थी तेरी आवाज़,
तेरे वीराने में आवाजें कहॉ खो गयी

तेरी तनहाइयों में चलने वाली सब बातें,
तेरी रुसवाइयों में बोल कहॉ खो गयी

हर सर-ए-शाम नम जो करती मेरी आंखें,
मेरे अश्कों की वो बरसातें कहॉ खो गयी

तेरे पैगामों में गुल-ओ-बू जो बसी थी कासिद,
मेरी इस ज़ीस्त से ताबिश वो कहॉ खो गयी

नोवेम्बर रेन - गन्स एंड रोज़ेज़



जब अबसार में है झलकता हुआ
मंज़र-ए-इश्क बंदिश में
जो आगोश में है सिमटता हुआ
एहसास के इश्क ताबिश में

वक़्त हरदम हमता नहीं
दिल बेशक बदलते हैं
नूर-ए-शमा जिंदा नहीं
गर फलक से अश्क बरसते हैं

आशिक आते हैं आशिक जाते हैं
यौम कहॉ रुखसत हुआ
गर वक़्त को साख पे रखते हैं
दिल चैन में तू अपना हुआ

है इश्क ही करना मुझसे जो
इश्क वो आज़ाद हो
या मुझको चलना होगा गो
अश्क भरी बरसात हो

कुछ मुद्दत अकेले में
कुछ हँगाम सबसे जुदा कुछ
मुद्दत अकेले सबको
कुछ हँगाम सबसे जुदा

जब वली सबब-ए-कोफ़्त हो
है मुश्किल साफ दिल भी हो
पर वक़्त भुला देगा हर गम
गर गम मिटाने का हो दम

कुछ मुद्दत मुझे अकेले में
कुछ मुझे हँगाम सबसे जुदा
कुछ मुद्दत अकेले सबको
कुछ हँगाम सबसे जुदा जब

थम जाये तूफ़ान-ए-तर्स
और बाक़ी हो बस साया मेरा
इश्क मुझ ही से करना अर्ज़
जो गिला ना सहने पाये गैरा

ना घबराना तारीक से अब
राह ढूँढ ही लेंगे वो
कुछ भी हरदम हमता नहीं
वो अश्क भरी बरसात हो

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गन्स एंड रोज़ेज़ के गाने नोवेम्बर रेन से प्रेरित
अंग्रेज़ी लघुकथा 'विदाउट यू' पर आधारित