खता

एक खामोशी है हर ओर बियाबान में

कभी कहकहों के फुव्वारे हुआ करते थे यहाँ

कुछ आवाजें बोलती थी इन हवाओं में

कुछ लफ्ज़ शोर मचाते थे कभी



हर झोंके में कुछ कांपते साज़ दफ़न हैं

कुछ बातें बाकी हैं ज़र्रों में अब भी



एक बेवा की टूटी चूड़ी की खनक सुनाई देती है

बुझी पलक से गिरे अश्क की चीख सुनाई देती है

रगों से निकले लाल खून की आह सुनाई देती है

मुर्दा दिल और धडकनों की फफक सुनाई देती है



सालों पहले, इसी ज़मीं पर, कुछ बरगद के पेड़ खड़े थे

सालों पहले, इसी ज़मीं ने, कुछ बेगैरत लोग जने थे



दूर कहीं, किसी कोने में, कुछ बेगैरत लोग खड़े हैं

दूर कहीं, किसी कोने में, कुछ बरगद के पेड़ गिरे हैं


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