कौन है हिंदू, कौन मुसलमाँ


मेरे मुल्क की बदनसीबी में, कौन है हिंदू, कौन मुसलमाँ...
जात धर्म की राजनीति में, कौन है हिंदू, कौन मुसलमाँ...



बीती रात को चौराहे पर, एक अक्स की साँस रुकी थी
दर्पण के बिखरे टुकडों में, कौन है हिंदू, कौन मुसलमाँ...



नींद में शायद, चाँद रात में, एक रूह की काँप सुनी थी
सरगम के टूटे साजों में, कौन है हिंदू, कौन मुसलमाँ...



आज सुबह सहरी से पहेले, आसमान में घटा सुर्ख थी
कुचले फूलों के रंगों में, कौन है हिंदू , कौन मुसलमाँ...



आजादी की सालगिरह पर, एक ज़फर की मौत हुई थी
अमर शहीदों के बलिदानों में, कौन है हिंदू, कौन मुसलमाँ...



नदी किनारे, ज़र्द रेत पर, नंगी लाशें पड़ी हुई हैं
सौ करोड़ इन बेगुनाहों में, कौन है हिंदू, कौन मुसलमाँ...



मेरे वतन के परवाजों में, मार मज़हब की कब तक होगी
जन गन मन अधिनायक जय हे, कौन है हिंदू, कौन मुसलमाँ

धरती अब भी घूम रही है



शायद शाम ढल न पाती
सर्द हवाएं थम सी जाती

सूरज शायद बुझ न जाता
चाँद फलक में खो न पाता

नर्म घास पर लेटे लेटे
शायद उस दिन रो न पाता

दर्द नज़र से बयाँ न होता
ग़मों का बादल फूट न पाता

...अगर तुम मिलने आ जाती
... मगर तुम नहीं आई....
और सूरज डूब गया...
चाँद भी नहीं आया...
सर्द हवाएं तेज़ हो गयी...
शब तारीक खेज़ हो गयी...

वक्त न जाने कितना बीता
खुश्क ज़माना किज्ब में जीता

दुनिया बेशक थम सी गयी है
धरती अब भी घूम रही है...
धरती अब भी घूम रही है...

ज़ख्म



हर चौराहे मौत खड़ी
हर सू एक जंग छिड़ी...

हर हाथ में खंजर
हर सिम्ट एक खूनी मंज़र...

यह ज़ख्मी शहर है
ज़ख्मी शहर यह

ज़ख्मों का शहर है...

रहबर



पंद्रह चाँद एक शब के...

पाँच...चमकना भूल गए...
चार की शुआ बाक़ी ले गए...
तीन... खो गए आसमान में
दो बादल के पीछे हैं...


एक बचा रहबर मेरा...
वो भी कुछ नाराज़ सा है!!!

सिफर


सुबह से कोई सोग है दिल में
आँख का पानी सूख गया है
लफ्ज़ लबों पर दुआ बने हैं
खुदा न जाने रूठ गया है
लाखों चेहरे पास खडे हैं
नज़र का चश्मा टूट गया है
सिफर से चल के सिफर पे पहुँचे
सफर का मकसद भूल गया है

अगर तुम आ भी जाओ


कुछ ख्वाहिशें अभी अधूरी सी
कुछ सपने अभी हैं बाक़ी


एक चुटकी समंदर की रेत
कुछ बूँद सेहरा का पानी
मुरझाये हुए फूल की खुश्बू
एक छोटा सा टुकड़ा चाँद का


जनवरी की बर्फ का बादल
सोए हुए सूरज की धूप
पलंग की लकडी का जंगल
अरमानों के पिंजर का खून


कुछ ख्वाहिशें अभी जवाँ हुई हैं
कुछ सपने पूरे होंगे कभी.....

मृग तृष्णा

मैं सारी रात जागता हूँ सूरज की पहली किरण की रोशनी को अपनी मुट्ठी में क़ैद करने के निरर्थक प्रयास में अपने अस्तित्त्व को नष्ट करता जा रहा हूँ कभी आँख लग जाती है तो सपने देखता हूँ सपने टूटते हैं, कुछ याद नहीं रहता, बस एक एहसास बाक़ी रह जाता है जो हिम्मत देता है तब तक जगे रहने की जब तक नींद ना आये दुःख, दर्द, हंसी, ख़ुशी, प्रेम, द्वेष, क्रोध, ममता कुछ भी नहीं बचा सर्दियों की धूप की गरमाहट, बारिश की पहेली बूँद, फूलों की खुश्बू, बरगद के पेड़ की शीतल छाँव, ठण्डी हवा का झोंका - इन सब के मायने पिछली बरसात में धुलते चले गए कहीँ पढा था कि आनंद और शांती एक दूसरे के विपरीत होते हैं ना आनंद है ना शांती, बस एक इंतज़ार है जिसे बस महसूस किया जा सकता है छूने के लिए हाथ बढ़ाओ तो हाथ में बस ख़ाक आती है, देखने की कोशिश करो तो आंखें धूमिल हो जाती हैं मैं तुम्हे देखना चाहता हूँ, सुनना चाहता हूँ, तुमसे कुछ कहना चाहता हूँ, तुम्हे छूना चाहता हूँ, तुम्हारे साथ जीना चाहता हूँ.........पर ना जाने कब सेहर होगी.....कब सूरज निकलेगा......और कब मैं उस किरण को छू पाउँगा......


कश म कश




फैली हर सिम्ट जो यादें थी कहॉ खो गयी,
मेरे चेहरे में एक सूरत थी कहॉ खो गयी

पहले हर साज़ से आती थी तेरी आवाज़,
तेरे वीराने में आवाजें कहॉ खो गयी

तेरी तनहाइयों में चलने वाली सब बातें,
तेरी रुसवाइयों में बोल कहॉ खो गयी

हर सर-ए-शाम नम जो करती मेरी आंखें,
मेरे अश्कों की वो बरसातें कहॉ खो गयी

तेरे पैगामों में गुल-ओ-बू जो बसी थी कासिद,
मेरी इस ज़ीस्त से ताबिश वो कहॉ खो गयी

नोवेम्बर रेन - गन्स एंड रोज़ेज़



जब अबसार में है झलकता हुआ
मंज़र-ए-इश्क बंदिश में
जो आगोश में है सिमटता हुआ
एहसास के इश्क ताबिश में

वक़्त हरदम हमता नहीं
दिल बेशक बदलते हैं
नूर-ए-शमा जिंदा नहीं
गर फलक से अश्क बरसते हैं

आशिक आते हैं आशिक जाते हैं
यौम कहॉ रुखसत हुआ
गर वक़्त को साख पे रखते हैं
दिल चैन में तू अपना हुआ

है इश्क ही करना मुझसे जो
इश्क वो आज़ाद हो
या मुझको चलना होगा गो
अश्क भरी बरसात हो

कुछ मुद्दत अकेले में
कुछ हँगाम सबसे जुदा कुछ
मुद्दत अकेले सबको
कुछ हँगाम सबसे जुदा

जब वली सबब-ए-कोफ़्त हो
है मुश्किल साफ दिल भी हो
पर वक़्त भुला देगा हर गम
गर गम मिटाने का हो दम

कुछ मुद्दत मुझे अकेले में
कुछ मुझे हँगाम सबसे जुदा
कुछ मुद्दत अकेले सबको
कुछ हँगाम सबसे जुदा जब

थम जाये तूफ़ान-ए-तर्स
और बाक़ी हो बस साया मेरा
इश्क मुझ ही से करना अर्ज़
जो गिला ना सहने पाये गैरा

ना घबराना तारीक से अब
राह ढूँढ ही लेंगे वो
कुछ भी हरदम हमता नहीं
वो अश्क भरी बरसात हो

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गन्स एंड रोज़ेज़ के गाने नोवेम्बर रेन से प्रेरित
अंग्रेज़ी लघुकथा 'विदाउट यू' पर आधारित