फैली हर सिम्ट जो यादें थी कहॉ खो गयी,
मेरे चेहरे में एक सूरत थी कहॉ खो गयी
पहले हर साज़ से आती थी तेरी आवाज़,
तेरे वीराने में आवाजें कहॉ खो गयी
तेरी तनहाइयों में चलने वाली सब बातें,
तेरी रुसवाइयों में बोल कहॉ खो गयी
हर सर-ए-शाम नम जो करती मेरी आंखें,
मेरे अश्कों की वो बरसातें कहॉ खो गयी
तेरे पैगामों में गुल-ओ-बू जो बसी थी कासिद,
मेरी इस ज़ीस्त से ताबिश वो कहॉ खो गयी
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