शायद शाम ढल न पाती
सर्द हवाएं थम सी जाती
सूरज शायद बुझ न जाता
चाँद फलक में खो न पाता
नर्म घास पर लेटे लेटे
शायद उस दिन रो न पाता
दर्द नज़र से बयाँ न होता
ग़मों का बादल फूट न पाता
...अगर तुम मिलने आ जाती
... मगर तुम नहीं आई....
और सूरज डूब गया...
चाँद भी नहीं आया...
सर्द हवाएं तेज़ हो गयी...
शब तारीक खेज़ हो गयी...
वक्त न जाने कितना बीता
खुश्क ज़माना किज्ब में जीता
दुनिया बेशक थम सी गयी है
धरती अब भी घूम रही है...
धरती अब भी घूम रही है...
सर्द हवाएं थम सी जाती
सूरज शायद बुझ न जाता
चाँद फलक में खो न पाता
नर्म घास पर लेटे लेटे
शायद उस दिन रो न पाता
दर्द नज़र से बयाँ न होता
ग़मों का बादल फूट न पाता
...अगर तुम मिलने आ जाती
... मगर तुम नहीं आई....
और सूरज डूब गया...
चाँद भी नहीं आया...
सर्द हवाएं तेज़ हो गयी...
शब तारीक खेज़ हो गयी...
वक्त न जाने कितना बीता
खुश्क ज़माना किज्ब में जीता
दुनिया बेशक थम सी गयी है
धरती अब भी घूम रही है...
धरती अब भी घूम रही है...
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