कुछ लोग थे, मेरे ही जैसे
लंबा सफर तय कर थे आए
साथ में लाए थे कुछ गोला बारूद
कुछ गोलियाँ चलायीं, कुछ श्मशान जलाए
और मुझ जैसे ही कुछ लोग गिराए
कुछ ने गुस्सा किया
कुछ ने आँसू बहाए
और कुछों ने दिल में
पक्के कुछ इरादे बनाए
एक ने उँगली उठायी
दूसरे ने गर्दन हिलाई
और तीसरे ने
कभी उँगली उठायी, कभी गर्दन हिलाई
अब गुस्सा थम गया है
आँसू सब बह गए हैं
और इरादे जो पक्के थे
सारे अब डह गए हैं
कल शाम कब्रस्तान के दरवाज़े फिर से खोल दिए
और कुछ लोगों ने जाकर जश्न भी मनाया वहाँ पर
(उनकी याद में जो नहीं रहे.....
...और उनकी याद में जो बाक़ी हैं)
Image Courtesy - Indian Express
8 comments:
wowww!!!! :)
It reminded me of Dastak by Gulzar.... kharashein effect I guess !!
Chanakya
haan kharaashein bhi...aur aajkal gulzaar ki kaafi saari books padh raha hun.... :)
uttam.. saadharan shabdon mein itnaa bhaawuk chitran!
[don't approve this to b posted on ur blog, just goes on to display my vellapan :) plus aur kahan likhta fir ye]
waise achhca tha(mere liye kaafi OHT tha)... hav seen ur blog prob the frst time, and hav to admit i had no idea that such wud b ur writings.. mayb i had imagined more of comic or light-hearted observatons of things around u.. :P
btw, tho misleading, i still meant it all as a compilment.. :D
Well written
badhiya!!!
thanks! :)
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