सिफर


सुबह से कोई सोग है दिल में
आँख का पानी सूख गया है
लफ्ज़ लबों पर दुआ बने हैं
खुदा न जाने रूठ गया है
लाखों चेहरे पास खडे हैं
नज़र का चश्मा टूट गया है
सिफर से चल के सिफर पे पहुँचे
सफर का मकसद भूल गया है

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